लघु रुद्र पूजा
भगवान शिव का एक नाम रुद्र भी है। रुद्र शब्द की महिमा का गुणगान धार्मिक
ग्रंथों में मिलता है। यजुर्वेद में कई बार इस शब्द का उल्लेख हुआ है।
रुद्राष्टाध्यायी को तो यजुर्वेद का अंग ही माना जाता है। रुद्र अर्थात
रुत् और रुत् का अर्थ होता है दुखों को नष्ट करने वाला यानि जो दुखों को
नष्ट करे वही रुद्र है अर्थात भगवान शिव क्योंकि वहीं समस्त जगत के दुखों
का नाश कर जगत का कल्याण करते हैं। आइये आपको बताते हैं लघु रुद्र पूजा
के बारे में कि क्या होती है लघु रुद्र पूजा, यह कैसे की जाती है और इस
लघु रुद्र पूजा के करने से क्या लाभ मिलता है। क्या होती है लघु रुद्र
पूजा रुद्राष्टाध्यायी को यजुर्वेद का अंग माना जाता है। वैसे तो भगवान
शिव अर्थात रुद्र की महिमा का गान करने वाले इस ग्रंथ में दस अध्याय हैं
लेकिन चूंकि इसके आठ अध्यायों में भगवान शिव की महिमा व उनकी कृपा शक्ति
का वर्णन किया गया है। इसलिये इसका नाम रुद्राष्टाध्यायी ही रखा गया है।
शेष दो अध्याय को शांत्यधाय और स्वस्ति प्रार्थनाध्याय के नाम से जाना
जाता है। रुद्राभिषेक करते हुए इन सम्पूर्ण 10 अध्यायों का पाठ रूपक या
षडंग पाठ कहा जाता है। वहीं यदि षडंग पाठ में पांचवें और आठवें अध्याय के
नमक चमक पाठ विधि यानि ग्यारह पुनरावृति पाठ को एकादशिनि रुद्री पाठ कहते
हैं। पांचवें अध्याय में "नमः" शब्द अधिक प्रयोग होने से इस अध्याय का
नाम नमक और आठवें अध्याय में "चमे" शब्द अधिक प्रयोग होने से इस अध्याय
का नाम चमक प्रचलित हुआ। दोनों पांचवें और आठवें अध्याय पनरावृति पाठ नमक
चमक पाठ के नाम से प्रसिद्ध हैं। एकादशिनि रुद्री के ग्यारह आवृति पाठ को
लघु रूद्र कहा जाता है। वहीं लघु रुद्र के ग्यारह आवृति पाठ को महारुद्र
तो महारुद्र के ग्यारह आवृति पाठ को अतिरुद्र कहा जाता है। रुद्र पूजा के
इन्हीं रुपों को कहता है यह श्लोक-
रुद्रा: पञ्चविधाः प्रोक्ता देशिकैरुत्तरोतरं ।
सांगस्तवाद्यो रूपकाख्य: सशीर्षो रूद्र उच्च्यते ।।
एकादशगुणैस्तद्वद् रुद्रौ संज्ञो द्वितीयकः ।
एकदशभिरेता भिस्तृतीयो लघु रुद्रकः।।
क्यों होती है लघु रुद्र पूजा
"रुतम्-दु:खम्, द्रावयति-नाशयतीतिरुद्र:"
यानि भगवान शिव सभी दु:खों को नष्ट कर देते हैं। सबसे बड़ा और अहम कारण
रुद्र पूजा का यही है कि इससे भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है।
रुद्रार्चन से मनुष्य के पातक एवं महापातक कर्म नष्ट होकर उसमें शिवत्व
उत्पन्न होता है और भगवान शिव के आशीर्वाद से साधक के सभी मनोरथ पूर्ण
होते हैं। कहा भी जाता है कि सदाशिव रुद्र की पूजा से स्वत: ही सभी
देवी-देवताओं की पूजा हो जाती है। रुद्रहृद्योपनिषद में कहा गया है कि
'सर्वदेवात्मको रुद्र: सर्वे देवा: शिवात्मका:' अर्थात् - सभी देवताओं की
आत्मा में रूद्र उपस्थित हैं और सभी देवता रूद्र की आत्मा हैं।
पूजा विधि
इसमें में रुद्राष्टाध्यायी के एकादशिनि रुद्री के ग्यारह आवृति पाठ किया
जाता है। इसे ही लघु रुद्र कहा जाता है। यह पंच्यामृत से की जाने वाली
पूजा है। इस पूजा को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। प्रभावशाली मंत्रो और
शास्त्रोक्त विधि से विद्वान ब्राह्मण द्वारा पूजा को संपन्न करवाया जाता
है। इस पूजा से जीवन में आने वाले संकटो एवं नकारात्मक ऊर्जा से छुटकारा
मिलता है।
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