मकर संक्रान्ति हिन्दुओं का प्रमुख पर्व है। जब सूर्य मकर राशि पर आता है
तभी इस पर्व को मनाया जाता है। मकर संक्रान्ति के दिन से ही सूर्य की
उत्तरायण गति भी प्रारम्भ होती है। इसलिये इस पर्व को कहीं-कहीं
उत्तरायणी भी कहते हैं। शास्त्रों के अनुसार, दक्षिणायण को देवताओं की
रात्रि अर्थात् नकारात्मकता का प्रतीक तथा उत्तरायण को देवताओं का दिन
अर्थात् सकारात्मकता का प्रतीक माना गया है। इसीलिए इस दिन जप, तप, दान,
स्नान, श्राद्ध, तर्पण आदि धार्मिक क्रियाकलापों का विशेष महत्व है। ऐसी
धारणा है कि इस अवसर पर दिया गया दान सौ गुना बढ़कर पुन: प्राप्त होता
है। इस दिन शुद्ध घी एवं कम्बल का दान मोक्ष की प्राप्ति करवाता है। जैसा
कि निम्न श्लोक से स्पष्ठ होता है-
माघे मासे महादेव: यो दास्यति घृतकम्बलम।
स भुक्त्वा सकलान भोगान अन्ते मोक्षं प्राप्यति॥
मकर संक्रान्ति के अवसर पर गंगास्नान एवं गंगातट पर दान को अत्यन्त शुभ
माना गया है। महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिये
मकर संक्रान्ति का ही चयन किया था। मकर संक्रान्ति के दिन ही गंगाजी
भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर में जाकर
मिली थीं।
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